जीनत के मुखमंडल पर स्वेद-विन्दु झलकने लगे । बादशाह ने व्याकुल होकर कहा-बस करो प्यारी जीनत ! बस करो ! बहुत अच्छा बजाया, वाह, क्या बात है ! साकी, एक प्याला शीराजी शर्बत !
'हुजूर आया'-कहता हुआ एक सुकुमार बालक सामने आया, हाथ में पान-पात्र था । उस बालक की मुख-कान्ति दर्शनीय थी। भरा प्याला छलकना चाहता था, इधर उसकी घुँघराली अलकें उसकी आंखों पर बरजोरी एक पर्दा डालना चाहती थीं । बालक प्याले को एक हाथ में लेकर जब केश-गुच्छ को हटाने लगा, तब जीनत और शाहआलम दोनों चकित होकर देखने लगे। अलकें अलग हुई । बेगम ने एक ठंडी सांस ली। शाहआलम के मुख से भी एक आह निकलना ही चाहती थी, पर उसे रोककर निकल पड़ा-'बेगम को दो'।
बालक ने दोनों हाथों से पान-पात्र जीनत की ओर बढ़ाया। बेगम ने उसे लेकर पान कर लिया ।
नहीं कह सकते कि उस शर्बत ने बेगम को कुछ तरी पहुंँचाई या गर्मी; किन्तु हृदय-स्पन्दन अवश्य कुछ बढ़ गया । शाहआलम ने झुककर कहा-एक और !
बालक विचित्र गति से पीछे हटा और थोड़ी देर में दूसरा प्याला लेकर उपस्थित हआ । पान-पात्र निश्शेष कर शाहआलम ने हाथ कुछ और फैला दिया, और बालक की ओर इंगित करके बोले-कादिर, जरा उँगलियां तो बुला दे।
बालक अदब से सामने बैठ गया और उनकी उँगलियों को हाथ में लेकर बुलाने लगा।
मालूम होता है कि जीनत को शर्बत ने कुछ ज्यादा गर्मी पहुंँचाई। वह छोटे बजरे के मेहराब में से झुककर यमुना-जल छूने लगी । कलेजे के नीचे एक मखमली तकिया मसली जाने लगी, या