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अशोक
 


रथ को रुका जानकर भीतर से एक पुरुष निकला और उसने सारथी से पूछा---क्यों, तुमने रथ क्यों रोक दिया ?

सारथी---अब घोड़े नहीं चल सकते ।

पुरुष---तब तो फिर बड़ी विपत्ति का सामना करना होगा;क्योंकि पीछा करनेवाले उन्मत्त सैनिक आ ही पहुंचेंगे।

सारथी---तब क्या किया जाय ? (सोचकर) अच्छा, आप लोग इस समीप की कुटी में चलिये, यहां कोई महात्मा है, वह अवश्य आप लोगों को आश्रय देंगे।

पुरुष ने कुछ सोचकर सब आरोहियों को रथ पर से उतारा, और वे सब लोग उसी कुटी की ओर अग्रसर हुए ।

कुटी के बाहर एक पत्थर पर अधेड़ मनुष्य बैठा हुआ है ।उसका परिधेय वस्त्र भिक्षुओं के समान है। रथ पर के लोग उसी के सामने जाकर खड़े हुए। उन्हें देखकर वह महात्मा बोले---आप लोग कौन है और क्यों आये है ?

उसी पुरुष ने आगे बढ़कर, हाथ जोड़कर कहा---महात्मन्, हम लोग जैन है और महाराज अशोक की आज्ञा से जैन लोगों का सर्वनाश किया जा रहा है । अतः हम लोग प्राण के भय से भाग कर अन्यत्र जा रहे है । पर मार्ग में घोडे थक गये, अब ये इस समय चल नहीं सकते। क्या आप थोड़ी देर तक हम लोगों को आश्रय दीजियेगा ?

महात्मा थोड़ी देर सोचकर बोला---अच्छा आप, लोग इसी कुटी में चले जाइये।

स्त्री-पुरुषों ने आश्रय पाया ।

अभी उन लोगों को बैठे थोड़ी ही देरे हुई है कि अकस्मात अश्व-पद-शब्द ने सबको चकित और भयभीत कर दिया । देखते-देखते दस अश्वारोही उस कुटी के सामने पहुंच गये। उनमें से एक महात्मा की ओर लक्ष्य करके बोला---ओ भिक्षु, क्या तूने