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ग्राम
 


स्त्री की कथा को सुनकर मोहनलाल को बड़ा दुःख हुआ । रात विशेष बीत चुकी थी, अतः रात्रि-यापन करके, प्रभात में मलिन तथा पश्चिमगामी चन्द्र का अनुसरण करके, बताये हुए पथ से वह चले गये।

पर उनके मुख पर विषाद तथा लज्जा ने अधिकार कर लिया था। कारण यह था कि स्त्री की जमींदारी हरण करनेवाले, तथा उसके प्राणप्रिय पति से उसे विच्छेद कराकर इस भांति दःख देनेवाले कुन्दनलाल, मोहनलाल के ही पिता थे।




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