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ग्राम
 


है। ग्रामीण लोग अपना हल कन्धे पर रक्खे, बिरहा गाते हुए, बैलों की जोड़ी के साथ, घर की ओर प्रत्यावर्तन कर रहे है ।

एक विशाल तरुवर की शाखा में झूला पड़ा हुआ है, उसपर चार महिलाएं बैठी है, और पचासों उसको घेरकर गाती हुई घूम रही है । झूला के पेंग के साथ 'अबकी सावन सइयां घर रहुरे' की सुरीली पचासों कोकिल-कण्ठ से निकली हुई तान पशुगणों को भी मोहित कर रही है । बालिकाएं स्वच्छन्द भाव से क्रीड़ा कर रही है । अकस्मात् अश्व के पद-शब्द ने उन सरला कामिनियों को चौंका दिया । वे सब देखती है तो हमारे पूर्व-परिचित बाबू मोहनलाल घोड़े को रोककर उसपर से उतर रहे है । वे सब उनका भेष देखकर घबड़ा गयीं और आपस में कुछ इंगित करके चुप रह गयीं।

बाबू मोहनलाल ने निस्तब्धता को भंग किया, और बोले ! भद्रे---यहां से कुसुमपुर कितनी दूर है ? और किधर से जाना होगा ?

एक प्रौढ़ा ने सोचा कि 'भद्रे'कोई परिहास-शब्द तो नहीं है, पर वह कुछ कह न सकी, केवल एक ओर दिखाकर बोली-इहां से डेढ़ै कोस तो बाय, इहै पैड़वा जाई ।

बाबू मोहनलाल उसी पगडंडी से चले । चलते-चलते उन्हें भ्रम हो गया;और वह अपनी छावनी का पथ छोड़कर दूसरे मार्ग से जाने लगे। मेघ घिर गये,जल वेग से बरसने लगा, अन्ध- कार और घना हो गया । भटकते-भटकते वह एक खेत के समीप पहुंचे; वहां उस हरे-भरे खेत में एक ऊँचा और बड़ा मचान था जो कि फूस से छाया हुआ था, और समीप ही में एक छोटा-सा कच्चा मकान था।

उस मचान पर बालक और बालिकाएं बैठी हुई कोलाहल मचा रही थीं । जल में भीगते हुए भी मोहनलाल खेत के समीप: खड़े होकर उनके आनन्द कलरव को श्रवण करने लगे।