रामू---वार करने से सम्भव है कि उछले और तुम्हारे हाथ
छूट जायें, तो तुमको यह तोड़ डालेगा।
हीरा---नहीं, तुम मार लो, मेरा हाथ ढीला हुआ जाता है।
राम---तुम हठ करते हो, मानते नहीं।
इतने में हीरा का हाथ कुछ बात-चीत करते-करते ढीला पड़ा; वह चीता उछलकर हीरा के कमर को पकड़कर तोड़ने लगा।
रामू खड़ा होकर देख रहा है, और पैशाचिक आकृति उस घृणित पशु के मुख पर लक्षित हो रही है, और वह हँस रहा है।
हीरा टूटी हुई सांस से कहने लगा---अब भी मार ले ।
रामू ने कहा---अब तू मर ले, तब वह भी मारा जायगा । तूने हमारा हृदय निकाल लिया है, तूने हमारा घोर अपमान किया है, उसी का प्रतिफल है। इसे भोग ।
हीरा को चीता खाये डालता है; पर उसने कहा---नीच ! तू जानता है कि 'चन्दा' अब मेरी होगी। कभी नहीं ! तू नीच है---इस चीते से भी भयंकर जानवर है ।
रामू ने पैशाचिक हँसी हँसकर कहा---चन्दा अब तेरी तो नहीं है, अब वह चाहे जिसकी हो !
हीरा ने टूटी हुई आवाज से कहा---तुझे इस विश्वासघात का फल शीघ्र मिलेगा और चन्दा फिर हमसे मिलेगी। चन्दा... प्यारी..च...
इतना उसके मुख से निकला ही था कि चीते ने उसका सिर
दांतों के तले दाब लिया । रामू देखकर पैशाचिक हँसी हँस रहा था।हीरा के समाप्त हो जाने पर रामू लौट आया, और झूठी बातें बनाकर राजा से कहा कि उसको हमारे जाने के पहले ही चीता ने मार लिया।