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छाया
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किशोरनाथ था । उसने मृणालिनी को देखकर बहुत हर्ष प्रकाश किया, और सब लोग मिलकर बहुत आनन्दित हुए।

बहुत कुछ बातचीत होने के उपरान्त मृणालिनी और किशोर दोनो ने मदन के घर चलना स्वीकार किया। नावें नदी-तट पर स्थित मदन के घर की ओर बढ़ी। उस समय मदन को एक दूसरी ही चिन्ता थी।

भोजन के उपरान्त किशोरनाथ ने कहा---मदन, हम अब भी तुमको छोटा भाई ही समझते है; पर तुम शायद हमसे कुछ रुष्ट हो गये हो।

मदन ने कहा---भैया, कुछ नही । इस दास से जो कुछ ढिठाई हुई हो, उसे क्षमा करना, मै तो आपका वही मदन हूँ।

इसी तरह की बहुत-सी बातें होती रहीं, और फिर दूसरे दिन किशोरनाथ मृणालिनी को साथ लेकर अपने घर गया ।


अमरनाथ बाबू की अवस्था बड़ी शोचनीय है । वह एक प्रकार से मद्य के नशे में चूर रहते है, काम-काज देखना सब छोड़ दिया है।अकेला किशोरनाथ काम-काज सँभालने के लिए तत्पर हुआ, पर उसके व्यापार की दशा अत्यन्त शोचनीय होती गयी, और उसके पिता का स्वास्थ्य भी बिगड़ चला। क्रमश. उसको चारों ओर अंधकार दिखाई देने लगा।

संसार की कैसी विलक्षण गति है! जो बाबू अमरनाथ एक समय सारे सीलोन में प्रसिद्ध व्यापारी गिने जाते थे, और व्यापारी गिने जाते थे,और व्यापारी लोग जिनसे सलाह लेने के लिए तरसते थे, वही अमरनाथ इस समय कैसी अवस्था में है! कोई उनसे मिलने भी नहीं आता!

किशोरनाथ एक दिन अपने आफिस में बैठा कार्य देख रहा था । अकस्मात् मृणालिनी भी उसी स्थान में आ गयी और एक कुर्सी