छोड़ दिया।
नवयुवक 'किशोर' बहुत चिन्तित हुआ, किन्तु वह धैर्य के साथ सांसारिक कष्ट सहने लगा।
मदन के चले जाने से मृणालिनी को बड़ा कष्ट हुआ। उसे यह बात और भी खटकती थी कि मदन जाते समय उससे क्यों नहीं मिला । वह यह नहीं समझती थी कि मदन यदि जाते समय उससे मिलता, तो जा नहीं सकता था।
मृणालिनी बहुत विरक्त हो गयी । संसार उसे सूना दिखाई देने लगा। किन्तु वह क्या करे ? उमे अपनी मानसिक व्यथा सहनी ही पड़ी।
मदन ने अपने एक मित्र के यहां जाकर डेरा डाला। वह भी
मोती का व्यापार करता था । बहुत सोचने-विचारने के उपरान्त
उसने भी मोती का ही व्यवसाय करना निश्चित किया।
मदन नित्य सन्ध्या के समय, मोती के बाजार में जा, मछुए लोग जो अपने मेहनताने में मिली हुई मोतियों की सीपियां बेचते थे--उनको खरीदने लगा ; क्योंकि इसमें थोड़ी पूंजी से अच्छी तरह काम चल सकता था। ईश्वर की कृपा से उसको नित्य विशेष लाभ होने लगा।
संसार में मनुष्य की अवस्था सदा बदलती रहती है। वही मदन, जो तिरस्कार पाकर दासत्व छोड़ने पर लक्ष्यभ्रष्ट हो गया था, अब एक प्रसिद्ध व्यापारी बन गया।
मदन इस समय सम्पन्न हो गया। उसके यहां अच्छे-अच्छे लोग
मिलने-जुलने आने लगे । उसने नदी के किनारे एक बहुत सुन्दर
बँगला बनवा लिया है; उसके चारों ओर सुन्दर बगीचा भी है।
व्यापारी लोग उत्सव के अवसरों पर उसको निमंत्रण देते है; वह