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छाया
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रही है। चारों ओर जल-ही-जल है, चन्द्रमा अपने पिता की गोद मे क्रीड़ा करता हुआ आनन्द दे रहा है । अनन्त सागर में अनन्त आकाश-मण्डल के असंख्य नक्षत्र अपने प्रतिबिम्ब दिखा रहे है ।

मदत तीन-चार बरस में युवक हो गया है । उसकी भावुकता बढ़ गयी थी। वह समुद्र का सुन्दर दृश्य देख रहा था । अकस्मात् एक प्रकाश दिखाई देने लगा। वह उसी को देखने लगा।

उस मनोहर अरुण का प्रकाश नील जल को भी आरक्तिम बनाने की चेष्टा करने लगा। चंचल तरंगों की लहरियां सूर्य की किरणों से क्रीड़ा करने लगीं। मदन उस अनन्त समुद्र को देखकर डरा नहीं, किन्तु अपने प्रेममय हृदय का एक जोड़ा देखकर और भी प्रसन्न हुआ । वह निर्भीक हृदय से उन लोगों के साथ सीलोन पहुंचा।

अमरनाथ के विशाल भवन में रहने से मदन को बड़ी ही प्रसन्नता है । मृणालिनी और मदन उसी प्रकार से मिलते-जुलते है, जैसे कलकत्ते में मिलते-जुलते थे। लवण-महासमुद्र की महिमा दोनों ही को मनोहर जान पड़ती है । प्रशान्त महासागर के तट की सन्ध्या दोनों के नेत्रों को ध्यान में लगा देती है । डूबते हुए सूर्यदेव देव-तुल्य हृदयों को संसार की गति दिखलाते है, अपने राग की आभा उन प्रभातमय हृदयों पर डालते हैं, दोनों ही सागर-तट पर खड़े सिन्धु की तरंग-भंगियों को देखते है। फिर भी दोनों ही दोनों की मनोहर अंग-भंगियों में भुले हुए है।

महासमुद्र के तट पर बहुत समय तक खड़े होकर मृणालिनी और मदन उस अनन्त का सौन्दर्य देखते थे । अकस्मात बैड का सुरीला राग सुनाई दिया, जो कि सिन्धु-गर्जन को भी भेद कर निकलता था।