यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१११
मदन-मृणालिनी
 


समाज आपको दूसरी ही दृष्टि से देख रहा है ।

अमरनाथ---ऐसे समाज की मुझे कुछ पर्वाह नहीं है। मै तो केवल लड़की और लड़के का व्याह अपनी जाति में करना चाहता था । क्या टापुओं में जाकर लोग पहले बनिज नहीं करते थे? मैने कोई अन्य धर्म तो ग्रहण नहीं किया, फिर यह व्यर्थ का आडम्बर क्यो है ? और, यदि कोई खान-पान का दोष दे, तो क्या यहां पर तिलक कर पूजा करनेवाले लोगों से होटल बचा हुआ है ?

हीरामणि---फिर क्या कीजियेगा ? समाज तो इस समय केवल उन्हीं बगला-भगतों को परम धार्मिक समझता है !

अमरनाथ---तो फिर अब मै ऐसे समाज को दूर ही से हाथ जोड़ता हूँ।

हीरामणि---तो क्या ये लड़की-लड़के क्वांरे ही रहेगे ?

अमरनाथ---नहीं, अब हमारी यह इच्छा है कि तुम सबको लेकर उसी जगह चले । यहां कई वर्ष रहते भी हुआ, किन्तु कार्य सिद्ध होने की कुछ भी आशा नहीं है। तो फिर अपना व्यापार क्यों नष्ट होने दें ? इसलिये, अब तुम सबको वहीं चलना होगा । न होगा तो ब्राह्म हो जायेंगे, किन्तु यह उपेक्षा अब सही नहीं जाती।

  • * *

मदन मृणालिनी के संगम से, बहुत ही प्रसन्न है । सरला मृणालिनी भी प्रफुल्लित है । किशोरनाथ भी उसे बहुत ही प्यार करता है, प्रायः उसी को साथ लेकर हवा खाने के लिये जाता है।दोनों में बहुत ही सौहार्द है । मदन भी बाहर किशोरनाथ के साथ, और घर आने पर मृणालिनी की प्रेममयी वाणी से आध्या यित रहता है।

मदन का समय सुख से बीतने लगा! किन्तु बनर्जी महाशय के सपरिवार बाहर जाने की बातों ने एक बार उसके हृदय को उद्वेगपूर्ण