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छाया
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शाहजहां---ऐसा ? तो क्या जहांनारा! इस बदन में मुगल-रक्त नहीं है ? क्या तू मेरी कुछ भी मदद कर सकती है ?

जहांनारा---जहांपनाह की जो आज्ञा हो ।

शाहजहां---तो मेरी तलवार मेरे हाथ में दे । जब तक वह मेरे हाथ में रहेगी, कोई भी तख्त-ताऊस मुझसे न छुड़ा सकेगा।

जहांनारा आवेश के साथ---'हां जहांपनाह ! ऐसा ही होगा'---कहती हुई वृद्ध शाहजहां की तलवार उसके हाथ में देकर खड़ी हो गयी । शाहजहां उठा और लड़खड़ाकर गिरने लगा, शाहजादी जहांनारा ने बादशाह को पकड़ लिया, और तख्त-ताऊस के कमरे की ओर ले चली।

तख्त-ताऊस पर वृद्ध शाहजहां बैठा है, और नकाब डाले जहानारा पास ही बैठी हुई है, और कुछ सर्दार---जो उस समय वहां थे---खड़े है। नकीब भी खड़ा है। शाहजहां के इशारा करते ही उसने अपने चिरभ्यस्त शब्द कहने के लिए मुह खोला। अभी पहला ही शब्द उसके मुंह से निकला था कि उसका सिर छटककर दूर जा रहा! सब चकित होकर देखने लगे।

जिरहबांतर से लदा हुआ औरंगजेब अपनी तलवार को रूमाल से पोंछता हुआ सामने खड़ा हो गया, और सलाम करके बोला---हुजूर की तबीयत नासाज सुनकर मुझसे न रहा गया; इसलिए हाजिर हुआ।

शाहजहां---(कांपकर) लेकिन बेटा ! इतनी खू रेजी की क्या जरूरत थी। अभी-अभी वह देखो, बुड्ढे नकीब की लाश लोट रही है। उफ ! मुझसे यह नहीं देखा जाता ! ( कांपकर ) क्या बेटा, मुझे भी...( इतना कहते-कहते बेहोश होकर तख्त सेझुक गया )।

औरंगजेब---( कड़ककर अपने साथियों से ) हटाओ उस नापाक