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चोखे चौपदे


धूल में मिल गया बड़प्पन सब।
था भला, थे जहां, वही झड़ते।
क्या यही चाहिये सिरों पर चढ़।
बाल हो पाँव पर गिरे पड़ते॥

किस तरह हम तुम्हें कहें सीधे।
जब कि हो ऑख में समा गड़ते।
हो न सुथरे न चीकने सुधरे।
जब कि हो बाल तुम उखड़ पड़ते॥

चोटी

जा समय के साथ चल पाते नही।
टल सकी टाले न उन की दुख-घड़ी॥
छीजती छॅटती उखड़ती क्यों नही।
जब कि चोटी तू रही पीछे पड़ी॥

निज बड़ों के सॅग बुरा बरताव कर।
है नहीं किस की हुई साँसत बड़ी॥
क्यों नही फटकार सहती बेतरह।
जब कि चोटी मूँड के पीछे पड़ी॥