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अन्योक्ति


है दुखाते बहुत, गले पड़ कर।
सब उन्हें हैं सियाहदिल पाते॥
है कमी भो नहीं कड़ाई मे।
किस लिये बाल फिर न झड़ जाते॥

वे कभी तो पड़े रहे सूखे।
औ कभी तेल से रहे तर भी॥
की किसी की नही परवा।
बाल ने बाल के बराबर भी॥

या बरसता रहा सुखों का मेह।
या अचानक पड़ा सुखों का काल।
धार से पा बहुत सुधार सुधार।
बन गये या गये बनाये बाल॥

निज जगह पर जमे रहे तो क्या।
क्या हुआ बार बार धुल निखरे॥
चल गये पर हवा बहुत थोड़ी।
जब कि ए बाल बेतरह बिखरे॥