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चोखे चौपदे


है बुरी रुचि ही बना देती बुरा।
क्यों सहें लुचपन भली रुचि-थातियाॅ॥
लाड़ दिखला दूध पीने के समय।
क्या नहीं लड़के पकड़ते छातियाॅ॥

भेद कुछ छोटे बड़े मे है नही।
बान पर-हित की अगर होवे पड़ी॥
थातियाॅ हित की बनी सब दिन रही।
हों भले ही छातियाँ छोटी बड़ी॥

दैव की करतूत ही करतूत है।
कब मिटाये अंक माथे के मिटे॥
आज तक तो एक भी छाती नहीं।
हो सको चौड़ी हथौड़ी के पिटे॥

दुख न सब को सका समान सता।
मिस गये फूल लौं सभी न मिसे॥
वह दिया जाय पीस कितना ही।
पाँव बनता नहीं पिसान पिसे॥