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चोखे चौपदे
हो सके काम जो समय पर हो।
हो सका वह न ठान ठाने से॥
पाँव लेवें जमा भले ही हम।
मूॅछ जमती नही जमाने से॥
पट सके, या पट न औरों से सके।
पर कहीं "नटखट" भला है बन गया॥
पड़ सके या पड़ सके पूरी नहीं।
मूॅछ भूरी का न भूरापन गया॥
कब भलाई से भलाई ही हुई।
सादगी से बात सारी कब सधी॥
साध रह जाती सिधाई की नही।
देख सीधी दाढ़ियों को भी बँधी॥
बाहरी रूप रग भावों ने।
भीतरी बात है बहुत काढ़ी॥
खुल भला क्यों न जाय सीधापन।
देख सीधी खुली हुई दाढ़ी॥