यह पृष्ठ प्रमाणित है।
६६
चोखे चौपदे

अब न ऑसू आँख मे मेरी रहा।
आप ने ऑखें उठा ताका नही॥
क्य पके जी का मरम वह पा सके।
हो गया जिसका कि जी पाका नही॥

थी पसद बनाव की बातें हमे।
अनबनों का तुम गला रेते रहे॥
कब रहे लेते हमारा जी न तुम।
हम तुम्हे कब जी नही देते रहे॥

बात पर आन बान वालों की
आप क्यों कान दे नही सकते॥
तो गॅवा मान और क्या मांगें।
जी अगर दान दे नही सकते॥

बे ठने उस से रहेगी किस तरह।
जो कि उठते बैठते है ऐंठता॥
बात क्यों उस से बिठाये बैठती।
फेर करके पीठ जो है बैठता॥