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चोखे चौपदे

बात वह भी लगी बहुत खलने।
आप को जो न थी कभी खलती॥
अब लगे आप मुँह चलाने क्यों।
जीभ तो कम नहीं रही चलती॥

इस तरह का बना कलेजा है।
जो कि सारी मुसीबतें सह ले॥
बेधड़क आग मुँह उगल लेवे।
जीभ बातें गरम गरम कह ले॥

आप साहस बँधाइये मुझ को।
क्या करेंगी भली बुरी घातें॥
देखिये दूब न जाय जी मेरा।
सुन दबी जीभ की दबी बातें॥

जब कि नीरस बात मुँह पर आ गई।
किस तरह रस-धार तब जी में बहे॥
छरछराहट जब कलेजे में हुई।
मुस्कुराहट होंठ पर कैसे रहे॥