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केसर की क्यारी

चाहिये था न चोट यों करना।
पत्थरों के बने न सीने थे॥
क्यों भला आप भर गये साहब।
कान हो तो भरे किसी ने थे॥

क्यों कहेंगे न, सुन सके, सुन लें।
हम मनायेगे, आप ऐंठे हैं।
हम सकें मूॅद मुॅह भला कैसे।
आप तो कान मूॅद बैठे हैं॥

आप तूमार बाँध देते हैं।
और हम ने न खोल मुॅह पाया॥
हो न जावें तमाम हम कैसे।
आप का गाल तमतमा आया॥

आप ही जब कि तन गये मुझ से।
तब भला किस तरह भवें न तनें॥
जब हुईं लाल लाल आँखें तब।
गाल कैसे न लाल लाल बनें॥