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केसर की क्यारी

देखिये क्या कर दिखाता भाग है।
वे भरे है और हम भी हैं खरे॥
आज वे बेदरदियों पर हैं अड़े।
हम खड़े हैं आँख में आँसू भरे॥

तब भला बात का असर क्या हो।
जब असर के न रह गये नाते॥
है कसर बैठ जब गई जी में।
किस तरह ऑख तब उठा पाते॥

तब भला सीध में कसर क्यों हो।
जब रहे ठीक आँख का तारा॥
तब सके चूक किस तरह से वह।
जब गया तीर ताक कर मारा॥

आज तक कुछ भी सॅभल पाये नहीं।
बात से तो नित सॅभलते ही रहे॥
ढंग बदलें जो बदलते बन सके।
आप तेवर तो बदलते ही रहे॥