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वक्तव्य

मैं ने 'बोलचाल' नाम की एक पुस्तक लिखी है। इस पुस्तक में बाल से लेकर तलवे तक के समस्त अंगों के मुहाविरों पर साढ़े तीन सहस्र से अधिक पद्य हैं । अङ्गों के अतिरिक्त और भी बहुत से मुहाविरे प्रयोजन के अनुसार इस ग्रंथ में आये हैं । इस ग्रंथ की भाषा बिल्कुल बोलचाल की भाषा है, हां कवितागत विशेषतायें उस में अवश्य मौजूद हैं।

वीणा के छेड़ने पर जो साधारण स्वर-लहरी उत्पन्न होती है, वह उँगलियों के सनियम संचालन से अनेक सरस, सुन्दर, कोमल, मधुर एव रुचिकर लहरियों में परिणत हो जाती है और आनुषगिक नाना प्रकार की धुनों के आधार से विमुग्धकर राग रागिनो की जनना बनती है। जो कण्ठ कभी सप्तस्वरों के साधनम रत दिखलाता है, यहो काल पाकर उन्हीं सप्तस्वरों के आधार से ऐसी ध्वनियों और भालापों का अव-लम्बन बन जाता है, जो प्रत्येक राग रागिनी को उन के सम भेदों के साथ गा कर हदय में सुधास्रोत