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चोखे चौपदे
देखते ही पसीज जावेंगे।
रीझ जाते कभी न वे ऊबे॥
टल सकेंगे न प्यार से तिल भर।
आँख के तिल सनेह में डूबे॥
जी टले पास से धड़कता है।
जोहते मुख कभी नहीं थकते॥
आँख से दूर तब करे कैसे।
जब पलक ओट सह नही सकते॥
देह सुकुमारपन बखाने पर।
और सुकुमारपन बतोले है॥
छू गये नेक फूल के गजरे।
पड़ गये हाथ में फफोले हैं॥
धुल रहा हाथ जब निराला था।
तब भला और बात क्या होती॥
हाथ के जल गिरे ढले हीरे।
हाथ झाड़े बिखर पड़े मोती॥