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रस के छीटें
भाग में मिलना लिखा था ही नहीं।
तुम न आये साँसतें इतनी हुईं॥
जी हमारा था बहुत दिन से टँगा।
आज आँखे भी हमारी टँग गईं॥
सूखती चाह-बेलि हरिआई।
दूध की मक्खियां बनीं माखे॥
रस बहा चाँदनी निकल आई।
खिल गये कौल, हँस पड़ी आँखें॥
सादगी चित से उतर पाई नहीं।
है नहीं भूली भलाई आप की॥
काढ़ने से है नहीं कढ़ती कभी।
आँख में सूरत समाई आप की॥
लोग कैसे न बेबसों सा बन।
रो उठे, खिल पड़े, खिझें, माखें॥
हो न किस पर गया खुला जादू।
देख जाढ़ भरी हुई आँखें॥