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चोखे चौपदे


निज भरोसे सधा न क्या स्वाधे ।
और का बल-भरोस है सपना ॥
देखना छोड़ दूसरों का मुँह ।
देखते क्यों रहे न मुंह अपना ॥

काम ले बार बार धीरज से ।
कब न जी को कचट गई खाई ॥
क्यों दुखो की चपेट में आवे ।
क्यों पड़े मुँह लपेट कर कोई ॥

रूप औ रग के लिये ही क्यों ।
जो किसी का ललच ललच डाले ॥
रख भलाई, सँभाल भोलापन ।
भूल पाये न मह भले-भाले ॥

चाह जो हो कि दुख नचा न सके ।
पास से सुब नही हिले डोले ॥
पाँव तो देख भाल कर डाले ।
सह सँभाले, संभाल कर बोले ॥