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केसर की क्यारी


काम मे ला खुला निघरघटपन ।
नाम मरदानगी मिटाना है ॥
बेबसों को लपेट चित पट कर ।
पालना पेट मुँह • पिटाना है ॥

सुन जिसे कोई नही पा कल सके ।
बात ऐसी क्यों निकल मुंह से पड़े ॥
रगतें हित की न जब उन मे रही ।
फूल मुँह से तब झड़े तो क्या झड़े ॥

खुल सकेगा तो नही ताला कभी ।
जो भली रुचि की मिली ताली नही ॥
पान को लाली न लाली रखेगी ।
रह सको मुंह की अगर लाली नही ॥

बेतरह वे न बेतुके बनते ।
श्री न संजीदगी तुम्ही खोते ॥
यों सुलगती न लाग-आग कभी ।
मुँह-लगे जो न मुंह लगे होते ॥