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चोखे चौपदे

कौन बातें बना सका अपनी ।
बात बेढंग बढ़ा बढ़ा कर के ॥
आँख पर चढ़ गया न कौन भला ।
आँख अपनी चढ़ा चढ़ा कर के ॥

बात सुन कर सिखावनों डूबी ।
जो कि है ठीक राह बतलाती ॥
जब नही सूझ बूझ रग चढ़ा ।
तब भला आँख क्यों न चढ़ जाती ॥

तुम भली चाल सीख लो चलना ।
औ भलाई करो भले जो हो ॥
धूल मे मत बटा करो रस्सी ।
आँख में धूल डालते क्यों हो ॥

ठीक वैसा न मान ले उस को ।
जो कि जैसे लिवास मे दीखे ॥
जी अगर है टटोल लेना तो ।
देखना आँख खोल कर सीखे ॥