यह पृष्ठ प्रमाणित है।
२४६
चोखे चौपदे
जब हमें ताक ताक कान तलक।
काम ने था कमान को ताना॥
जब जमा पॉव था बुरे पथ में।
तब भला किस लिये जमा गाना॥
सुन जिसे बार बार सिर न हिला।
लय न जिस की रही ठमक ठगती॥
तब भला गान मे रहा रस क्या।
तान पर तान जो न थी लगती॥
दूसरे उपजा नही सकते उसे।
है उपजती जो उपज उर से नही।।
पा सकेगा रस नही नीरस गला।
गा सकेगा बेसुरा सुर से नही।।
रात दिन वे गीत अब सुनते रहे।
चाव से जिनको भली रुचि ने चुना॥
रीझ रीझ अनेक मीठे कंठ से।
आज तक गाना बहुत मीठा सुना॥