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कोर कसर
हम समझते थे कि हैं कुछ आप भी।
किस लिये बेकार गट्टे हो गये॥
देख कर मुझ को खटाई में पड़ा
आप के क्यों दाँत खट्टे हो गये
कौड़ियों को हो पकड़ते दाँत से।
चाहिये ऐसा न जाना बन तुम्हें॥
छोड़ देगा कौड़ियों का ही बना।
यह तुमारा कौड़ियालापन तुम्हें॥
दैव का दान जो न देख सके।
आँख तो क्यों न मूंद लेते हो॥
और के दूध पूत दौलत पर।
दांत क्यों बार बार देते हो॥
हैं किसे चार हाथ पाँव यहां।
क्यों कमाई ना कर दिखाते हो॥
दूसरों की अटूट संपत पर।
दत क्यों बेतरह लगाते हो॥