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चोखे चौपदे
जो रसातल जाति को है भेजते।
क्यों न उन की आँख को पट्टी खुले॥
जो कि सहलाते सदा तलवा रहे।
हाथ क्यों तलवार ले उन पर तुले॥
जब समय पर जाय बन बेजान तन।
ताब हाथों में न जब हो वार की॥
तल बिचल हो जाँय जब तिल आँख के।
क्या करेगी धार तब तलवार की॥
वह कहाँ पर क्या सकेगी कर नहीं।
साहसी या सूरमा के साथ से॥
है हिला देती कलेजे बेहिले।
चल गये तलवार हलके हाथ से॥
सब बड़े से बड़े लड़ाकों को।
हैं दिये बेध बैध बरछी ले॥
फेर तलवार फेर में डाला।
कर सके क्या न हाथ फुरतीले॥