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हाथ और दान
दान जब तक फूल फल करता रहा।
पेड़ तब तक फूल फल पाता रहा॥
दान-रुचि जी में नहीं जिस के रही।
धन उसी के हाथ से जाता रहा॥
हित नमूना जो दिखाना है हमें।
जो चहें यह, सुख न सूना घर करें॥
तो बना दिल सब दिनों दूना रहे।
दान दोनों हाथ दसगूना करें॥
किस तरह तो छूटते धब्बे बुरे।
जो मिली होती भली सोती नही॥
तो न पाता हाथ का धुल पाप-मल।
दान-जल-धारा अगर धोती नहीं॥
पड़ गये पाप की तरंगों में।
नेक करतूत नाव को खोते॥
जो न पतवार दान के पाते।
लापता हाथ हो गये होते॥