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निराले नगीने

लग गये जिस के लगी ही लौ रहे।
वह लगन सच्ची, वहो दिखला सका॥
एक जिस से दो कलेजे हो सके।
प्यार वह, प्याई-कलेजा पा सका॥

डूब करके चाहतों के रग मे।
प्रोति-धारा में परायापन बहा॥
हित उसी मे घर हमे करते मिला।
प्यार-घर घरनी कलेजा ही रहा॥

हित-महॅक जिस की बहुत है मोहती।
जो रहा जनचित-भँवर को चावथल॥
पासका जिस से बड़ी छबि प्यार-सर।
है कलेजा बेटियों का वह कमल॥

जा रहा हे जगमगा हित-जोत से।
चोप कगूरा सका जिस से बिलस॥
प्यार का जिस पर मिला पानिप चढ़ा।
है कलेजा बेटियों का वह कलस॥