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निराले नगीने
कौन सा पद मिला नही उस से।
कौन सा मुख गया नहीं भोगा॥
फिर करे मोल जोल क्यों कोई।
मोल क्या मन अमोल का होगा॥
प्यार का प्यार जब न हो उस को।
जब न हित का उसे सहारा हो॥
तब हमे मान मिल सके कैसे।
मन न जब मानता हमारा हो॥
कब निछावर हुआ न वह उस पर।
धन बराबर कभी न तन के है॥
है रतन कौन इस रतन जैसा।
कौन सा मणि, समान मन के है॥
तब न कैसे और भी कस जायगा।
जब कि सन की गाँठ मे पानी पड़ा॥
तब कठिन से भी कठिन होगा न क्यों।
मन कठिन कठिनाइयों मे जब पड़ा॥