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चोखे चौपदे

है बदी बीज बैर का पुतला।
पाप का बाप सॉप का है तन॥
हे छुरा धार है धुरा छल का।
है बहुत ही बुरा कुजन का मन॥

देख कर के और को फूला फला।
रह सका उस का नही मुखड़ा हरा॥
कीच तो उस ने उछाला ही किया।
नीच का मन नीचपन से है भरा॥

वह अनूठा बसत जैसा है।
है बड़ा ही सुहावना उपबन॥
चाँद जैसा चमक दमक मे है।
है खिले फूल सा सुखी का मन॥

भोर का चाँद सॉझ का सूरज।
है लगातार दग्ध होता बन॥
है कमलदल तुषार का मारा।
बहु दुखों से भरा दुखी का मन॥