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चोखे चौपदे
अनमने क्यों बने हुए मन हो।
नेक सन्देह है न सत्ता मे॥
कह रहे है हरे भरे पौधे।
हरि रमा है हरेक पत्ता मे॥
मतलबी पालिसी-पसन्द बड़ा।
बेकहा बेदहल जले तन है॥
है उसे मद मुसाहिबी प्यारी।
साहिबी से भरा मनुज-मन है॥
पाक पर-दुख-दुखी परम कोमल।
हित धुरा, प्यार-जोत-तारा है॥
है दया-भाव का दुलारा वह।
सत मन संतपन सहारा है॥
है सुधा में सना हलाहल है।
फूल का हार साँप काला है॥
है निरा प्यार है निरा अनबन।
नारि का मन बड़ा निराला है॥