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निराले नगीने
है जहाँ चाहता वही जाता।
कौन है दौड़ धूप मे ऐसा॥
बेग वाला बहुत बड़ा है वह।
है पवन बेग में न मन जैसा॥
है कपट काटछाट का पुतला।
छूट और छेड़छाड़ का घर है॥
छैलपन है छलक रहा उस मे।
मन छिछोरा छली छछू दर है॥
बात करता कभी हवा से है।
वह कभी मद मद चलता है॥
खूब भरता कभी छलांगे है।
मन कभी कूदता उछलता है॥
मंद ऑखे क्या अँधेरे में पड़े।
जो लगाये है समाधि न लग रही॥
खोल आंखें मन सजग कर देख लो।
हे जगतपति जोत जग मे जग रही॥