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गागर में सागर
किस तरह मा के कमालों को कहें।
छू उसे हित-पेड़ रहता है हरा ॥
है पनपता प्यार तन की छांह में।
दूध से है छेद 'छाती का भरा ॥
देख कर अपने लड़ैते लाल को।
कब नही मुखड़ा रहा मा का खिला ॥
प्यार से छाती उछलती ही रही।
दूध छाती में छलकता ही मिला ॥
कौन बेले पर नहीं बनता हितू।
भाव अलबेले कहाँ ऐसे मिले ॥
एक मा के दिल सिवा है कौन दिल।
जाय जो छिल, पूत का तलवा छिले ॥
कवि
कबि अनूठे कलाम के बल से।
हैं बड़ा ही कमाल कर देते ॥
बेधने के लिये कलेजों को।
है कलेजा निकाल धर देते ॥