पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/१९०

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१८१
निराले नगीने

तो तजा घर बना बनाया क्यों।
घर बनाया गया अगर बन में॥
आप को सत मान क्यों बैठे।
मान अपमान है अगर मन मे॥

तब लगाया भभूत क्या तन पर।
जो सके मोह-भूत को न भगा॥
तो किया क्या वसन रँगा कर के।
मन अगर राम-रग मे न रँगा॥

घर बसे और क्या बसे बन मे।
बासना जो बनी रहे बस मे॥
बेकसे और क्या कसे काया।
मन किसी का अगर रहे कस मे॥

ढोग है लोकसाधनायें सब।
जी हमारा अगर न हो सुलझा॥
उलझनें छोड़ और क्या हैं वे।
मन कही और हो अगर उलझा॥