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काम के कलाम

रगरलियां हमें मनाना है।
रग जम जाय क्यों न जलवों से॥
है ललक लाल लाल रगत की।
ऑख मल जाय क्यों न तलवों से॥



निराले नगीने मन


है मनाना या मना करना कठिन।
मन सबों को छोड़ पाता छन नहीं॥
तब भला कैसे न मनमानी करे।
है किसी के मान का जब मन नही॥

काम के सब भले पथों को तज।
फँस गया बार बार भूलों मे॥
छोड़ फूले फले भले पौधे।
मन भटकता फिरा बबूलों में॥