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काम के कलाम

आग बल उठने कलेजे में लगे।
आँख से चिनगारियाँ कढ़ती रहें॥
देख उस को जी अगर जलता रहे।
तो हँसी को चाँदनी कैसे कहे॥

हैं थली होनहार लीकों को।
लाभ की या सहेलियाँ हैं ए॥
कौल की लाल लाल पंखड़ियाँ।
या किसी को हथेलियाँ हैं ए॥

अनूठे विचार

जब न उस मे मिला रसीलापन।
जीभ उस की बनी सगी तब क्या॥
फूल मुँह से अगर न झड़ पाया।
बात की झड़ भला लगी तब क्या॥

खोट घुट्टी में किसी की जो पड़ी।
वह बँटाने से कभी बॅटती नही॥
नाक कटवा ली गई कह कर जिसे।
काटने से बात वह कटती नही॥