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चोखे चौपदे

लोग चाहे कौंध बिजली की कहें।
या अमीधारा कहे रस में सनी॥
पर कहेगे हम बड़े ही चाव से।
है हॅसी मुखचन्द की ही चाँदनी॥

है सहेली खिले हुए दिल की।
फूल पर है सनेह-धार लसी॥
है लहर रसभरे उमगों की।
चाँदनी है हुलास चन्द हॅसी॥

जब हंसी तुझ से दुई ऑखे सुखी।
देख तुझ को सॉसते वे जब सहें॥
सूझ वाले तब न तुझ को किस तरह।
चॉदनी औ कौध बिजली की कहें॥

नास कर देती अगर सुध बुध रही।
किस तरह तो है अभी उस मे बसी॥
जब दरस की प्यास बुझतां ही नही।
तब भला रस-सोत कैसे है हँसी॥