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काम के कलाम
है बनाते निरोग कायम को।
काम के रम ढग बीच ढले॥
है बहुत ही लुभावने होते।
दाँत सुथरे धुले भले उजले॥
तुम कभी अनमोल मोती बन गये।
औ कभी हीरे बने दिखला दमक॥
दाँत है चालाकियाँ तुम मे न कम।
चौंकता हूं देख चौके की चमक॥
मिल न रगीनियाँ सकी उसको।
पास उस के हँसी नही होती॥
देख करके बहार दॉतों की।
हार कैसे न मानता मोती॥
सॉझ के लाल लाल बादल में।
है दिखाती कमाल चन्दकला॥
या बही लाल पर अमीधारा।
या हँसी होंठ पर पड़ी दिखला॥