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तलवा
जब न कॉटे के लिये कॉटा बने।
पाँव के नीचे पड़े जब सब सहे॥
जब छिदे छिल छिल गये सॅभले नही।
क्यों न तब छाले भरै तलवे रहे॥
काम के कलाम
बात की करामात
क्या अजब मुँह सी गया उनका अगर।
टकटकी बाँधे हुए जो थे खड़े॥
जब बरौनी सी तुझे सूई मिली।
आँख तुझ मे जब रहे डोरे पड़े॥
थिर नहीं होतीं थिरकती है बहुत।
हैं थिरकने मे गतों को जाँचती॥
काठ का पुतला ललकतों को बना।
आँख तेरी पुतलियाँ है नाचती॥