यह पृष्ठ प्रमाणित है।
२
चोखे चौपदे
हरि भला आँख में रमे कैसे।
जब कि उस में बसा रहा सोना ।
क्या खुली आँख श्री लगी लौ क्या ।
लग गया जबकि आँख का टोना ॥
मंदिरों मसजिदों कि गिरजने में ।
खोनने हम कहाँ कहाँ जावें ॥
आप फेले हुए जहाँ में है।
हम कहाँ तक निगाह फैलावें ॥
जान तेरा सके न चौड़ापन ।
क्या करेंगे विचार हो चौड़े।
है जहाँ पर न दोड़ मन की भी।
वाँ बिचारी निमाह क्या दौड़े ॥
भौं सिकोड़ी बके झके; बहके।
बन बिगड़ लड़ पड़े अड़े अकड़े ॥
लोक के माथ सामने तेरे।
कान हम ने कभी नहीं पकड़े ॥