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अन्योक्ति

देस-हित-राह पर चले चमका।
जम इसी से न पॉव पाया है॥
जातिहित पर जमे जमे तो क्यों।
हाथ मे तो दही जमाया है॥

तन पहन कर जिसे बिमल बनता।
चाहिये था कि वह बसन बुनते॥
जब बिछे फूल चुन नही पाये।
हाथ तब फूल क्या रहे चुनते॥

काम जब देते न गजरों का रहे।
जब कि काटों की तरह गड़ते रहे॥
जब भले बन थे भला करते नही॥
तब गले में हाथ क्या पड़ते रहे।

है खिला कौर पोंछता ऑसू।
ले बलायें उबार लेता है॥
दूसरे अग हो दुखी भर लें।
साथ तो एक हाथ देता है॥