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मूठी
वह भरी तो क्या जवाहिर से भरी।
जो नही हित-साधनाओं मे सधी॥
जब बॅधी वह बॉधने ही के लिये।
तब अगर मूठी बँधी तो क्या बॅधी॥
लाल मुँह कर तोड़ दे कर दाँत को।
साधने मे बैर के हो जब सधी॥
जब खुले पता, बँधे मूका, बनी।
तब खुली क्या और क्या मूठी बँधी॥
हाथ
बीज बोते रहे बुराई के।
जो बदी के बने रहे बम्बे।।
जो उन्हें देख दुख न लम्बे हों।
तो हुए हाथ क्या बहुत लम्बे॥