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उँगली

काम जैसे पसद है जिस को।
फल मिलेंगे उसे न क्यों वैसे॥
हैं अगर काट कूट मे रहती।
तो कटेंगी न उँगलियाँ कैसे॥

हाथ का तो प्यार सब के साथ है।
काम उस को है सबों से हर घड़ी॥
है छोटाई या बड़ाई को न सुध।
हो भले ही उँगलियों छोटी बड़ी॥

जी करे तो लाल होने के लिये।
लोभ में पड़ पड़ लहू मे वे सनें॥
क्यों कहे फलियाँ उन्हे छबि-बलि की।
उँगलियां कलियाँ न चंपे की बनें॥

दुख हुआ तो हुआ, यही सुख है।
हाथ से जो बिपत्ति के छूटी॥
तब भला टूट में पड़ी क्या वे।
टूट कर जो न उँगलियाँ टूटी॥