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अन्योक्ति
राह खोटी कर किसी की चाह को।
मत अनाड़ी हाथ की दे गेद कर॥
छरछराहट को बढ़ाती आन तू।
छीक! छाती में किसी मत छेद कर॥
मूँछ
तो न वह करतूत करतूत ही।
जो अँधेरे में न उॅजियाली रखे॥
तो निराली बात उस में क्या रही।
जो न काली मूॅछ मुॅह लाली रखे॥
दाढ़ी
बेबसी तो है इसी का नाम ही।
पड़ पराये हाथ में है छँट रही॥
फ्रेंच कट क्या सैकड़ों कट में पड़ी।
आज कितनी दाढ़ियाँ है कट रही॥