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चोखे चौपदे


वह भली होवे मगर पपड़ी पड़े।
दूध बड़ का ही हुआ 'हित' कर जसी॥
होंठ पपड़ाया हुआ ले क्या करे।
चाँदनी जैसी अमी डूबी हँसी॥

चाहिये था चाॅदनी जैसी छिटक।
वह बना देतो किसी की आँख तर॥
कर उसे बेकार बिजली कौध लौ।
क्या दिखाई मुसकुराहट होंठ पर॥

जब रहे अनमोल लाली से लसे।
पीक मे वे पान की तब क्यों सने॥
जब ललाये वे ललाई के लिये।
तब भला लब लाल मूॅगे क्या बने॥

लालची बन और लालच कर बहुत।
मान की डाली किसी को कब मिली॥
तब रहे क्यों लाल बनले पान से।
लब तुम्हें लाली निराली जबामली॥