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अन्योक्ति


रुच भले ही जाय खारापन तुझे।
पर खरी बातें भला किस ने सही॥
जीभ तुझ को चाहिये था सोचना।
एक खारापन खरापन है नही॥

सब रसों में जब कि मीठा रस जँचा।
और तू सब दिन अधिक उस मे सनी॥
जीभ तो है चूक तेरी कम नही।
जो न मीठा बोल कर मीठी बनी॥

होंठ

पान ने लाल और मिस्सी ने।
होंठ तुम को बना दिया काला॥
क्या रहा, जब ढले उसी रॅग मे।
रग मे जिस तुमे गया ढाला॥

जब कि उन मे न रह गई लस्सी।
वे भला किस तरह सटेंगे तब॥
नेह का नाम भी न जब लेगे।
होंठ कैसे नहीं फटेंगे तब॥