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अन्योक्ति


पान को कोस लें मगर वह तो।
है बुरी बात के पड़ी पाले॥
जब कही बात थी जलनवाली।
क्यों पड़े जीभ मे न तब छाले॥

बात तू ही बेठिकाने की करे।
किस तरह हम तब ठिकाने से रहे॥
जीभ तू ने बात जब बेजड़ कही।
बात की जड़ तब तुझे कैसे कहे॥

दाँत से बार बार छिद बिध कर।
जीभ है फल बुरे बुरे चखती॥
है मगर वह उसे दमक देती।
चाटती, पोंछती, बिमल रखती॥

क्या भला तीखे रसों को तब चखा।
जब न उस की काहिली को खो सकी॥
जाति को तीखी बनाने के लिये।
जीभ जब तीखी नही तू हो सकी॥