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चोखे चौपदे
है नही चुभने, कुचलने, कूचने।
छेदने औ बेधने ही के गिले॥
दाँत सारे औगुनों मे हो भरे।
तुम बिगड़ते औ उखड़ते भी मिले॥
जीभ
कट गई, दब गई, गई कुचली।
कौन साँसत हुई नही तेरी।
जीभ तू सोच क्या मिला तुझ को।
दाँत के आस पास दे फेरी॥
जब बुरे ढग में गई ढल तू।
फल बुरा तब न किस तरह पाती॥
बोलती ऐंठ ऐंठ कर जब थी।
जीभ तब ऐंठ क्यों न दी जाती॥
जब लगी काट छॉट में यह थी।
तब न क्यों काट छाँट की जाती॥
जब कतरब्योंत रुच गई उस को
जीभ तब क्यों कतर न दी जाती॥