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चोखे चौपदे

बात कड़वी निकल पड़ेहीगी।
क्यों न उस में सदा अमी बोलूं॥
राल टपके बिना नही रहती।
क्यों न मुँह को गुलाब से धो लू॥

मुँह! चढ़ा नाक भौंह साथी से।
पूच से नेह गॉठ सूठा तू॥
जो बनी झूठ को रही रुचि तो।
जूठ से झूठमूठ रूठा तू॥

और पर क्या बिपत्ति ढाओगे।
मुँह तुमारी विपत्ति तो हट ले॥
वह हँसे या डॅसे न औरों को।
उँस तुम्हीं को न नागिनी लट ले॥

दाँत जैसे कड़े, नरम लब से।
हैं सदा साथ साथ रह पाते॥
मुँह तुम्हारे निबाहने ही से।
हैं भले औ बुरे निबह जाते॥